Tuesday 5 September 2017

द्रौपदी की क्षमा याचना

क्षमा करो , हे कौंतेय, मुझे
तुमसे बड़ा अन्याय किया
प्रत्यक्ष प्रेम को तुम्हारे
अनदेखा कर पार्थ का ही ध्यान किया

यूं तो सब आर्यपुत्र मेरे लिए
एक ही समान रहे
मानव निर्बलता थी मन की
केवल एक पर हृदय टिके

क्षमा करो, हे भीम, मुझे 
तुम्हें तब भी ना पहचाना था 
मेरी हर इच्छा को पूरा करने 
तुमने अपने मन में ठाना था 

हर कामना मेरी
मेरे जन्म जैसी मुश्किल थी 
अग्नि-कुंड से जन्मी मैं
तब भी तुम्हारी प्रेयसी थी 

चाहते तो ना भी करते 
पर तुमने ये  दायित्व लिया 
क्षमा कर दो मुझको 
कहे तुमसे तुम्हारी भार्या 

धनराज के आँगन से तुम 
मेरे लिए थे  वो पुष्प लाये 
सुदेष्णा रानी की सेविका बनूँगी 
केवल तुम्हारी आँखों में आँसू आये 

जाने किस ओर देखती मैं 
तुम्हारी ओर से अनजानी बनी रही 
कहा तो दुर्योधन को था 
मैं भी तो आँखों वाली अँधी बनी रही 

इतना प्रेम था मेरे सामने 
मैंने उस पर ना ध्यान दिया 
जाने किस मृग-तृष्णा में 
जीवन अपना मैंने जान दिया 

भरी सभा में चीर-हरण को 
अपमान अपना केवल तुमने माना था 
कौरवों से प्रतिशोध लोगे 
ये केवल तुमने मन में ठाना था 

क्षमा करो, हे पवनपुत्र, मुझे 
मैं अपने दुःख से व्याकुल थी 
तुम्हारी नेत्रों के अश्रुओं को 
ना देख सकी, हाँ, मैं ही पागल थी 

तुम्हारे अग्रज को भय था अज्ञातवास में 
कहीं भेद ना खुल जाए 
उसकी चिंता किये बिना 
तुम मेरे सतीत्व की रक्षा को आगे आये 

वध कर कीचक का तुमने 
मेरे सम्मान का मान किया 
जाने क्यूँ फिर भी मैंने 
मन-प्राण में तुमको ना स्थान दिया 

मेरी रक्षा करने को तुमने 
मुझको काँधे पर बिठाया 
अपहरण करने वाले जयद्रथ को 
तुमने ही तो मार गिराया 

क्षमा करो, हे कौन्तेय, मुझे 
मैंने सदा तुम्हारी उपेक्षा की 
कितना प्रेम भरा था तुम में 
जो तुमने कभी मुझसे ना अपेक्षा की 

दुःशासन के रक्त से केश धोकर मेरे तुमने 
मेरे प्रतिशोध की ज्वाला को शांत किया 
कौरवों का नाश कर तुमने 
मेरे अपमान को सम्मान दिया  

कैसे तुमने सदैव ही मेरे मन को पहचाना 
पड़ी हूँ आज मृत्यु की प्रतीक्षा में 
तुम्हारे सिवा मुझे किसी ने ना जाना 

आज भी केवल तुम ही आये 
कहते मेरी महारानी पांचाली 
इस अंतिम क्षण में तुम्हारे 
बोलो अपनी इच्छा अंतिम वाली 

क्षमा कर दो तुम मुझे 
के प्रेम को तुम्हारे ना पहचाना 
हे भीम, अगले जन्म 
तुम सबसे बड़े हो कर आना 
तन-मन-प्रेम सब तुम्हारा होगा 
मेरी उपेक्षा को क्षमा कर जाना 



---- द पर्पल हिप्पो 

Wednesday 19 July 2017

सुन माटी के दीवरे
जलियो सारी रैन
पी का रस्ता देख रहे
मेरे ये दो नैन

ओ रे दीवरे सुनियो
एक से अपने भाग
तू जले जिसकी ख़ातिर
मैं भी जलूँ सारी रात

एक संदेसा भेज दियो
तू चांदन के हाथ
अब के आवे जो काले बदरा
ले आवें पी को साथ

सुनियो ओ रे दीवरे
हवा से ना रख तू बैर
कहियो ओ से ले आवे
मोरे पी की ख़ैर

भिजवा दूँ अपनी चूनर
मैं नदिया के संग
पी देखे जाने रे
मोरे अँसुवन कौन से रँग 

प्रीतम तोरी प्रीत में 
क्या दिन और क्या रैन 
ले गयो जियरा मोरा 
ले गयो मोरा चैन 

सुन माटी के दीवरे 
एक सी अपनी पीर 
खुद तो तू जल जल मरे 
कहे मोसे रख तू धीर 

ओ री सखी सुनियो रे 
कहियो पी से बात 
करके क़ैद मोहे नयनन में 
कर दे मोहे आज़ाद।।




---- द पर्पल हिप्पो